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चिंता_क्यों_करते_हो ?


किसी सेठ के पास एक नौकर गया।
सेठ ने पूछाः "रोज के कितने रुपये लेते हो?"
नौकरः "बाबू जी ! वैसे तो आठ रूपये लेता हु l फिर भी आप जो दे दें।"
सेठः "ठीक है, आठ रुपये दूंगा ।
अभी तो बैठो।
फिर जो काम होगा, वह बताऊँगा।"
सेठ जी किसी दूसरे काम में लग गये।
उस नये नौकर को काम बताने का मौका नहीं मिल पाया।
जब शाम हईु तब नौकर ने कहाः "सेठ जी! लाइये मेरी मजदूरी ।
"सेठः" मैंने काम तो कुछ दिया ही नहीं, फिर मजदरीू किस बात की ?"
नौकरः "बाबू जी ! आपने भले ही कोई काम नहीं बताया किन्तु मैं बैठा तो आपके लिए
ही रहा।"
सेठ ने उसे पैसे दे दिए ।
जब साधारण मनुष्य के लिए खाली-खाली बैठे रहने पर भी वह मजदरीू दे देता है,
तो परमात्मा के लिए खाली बैठे भी रहोगे तो वह भी तुम्हें दे ही देगा।
'मन नहीं लगता.... क्या करें ?'
नहीं, मन नहीं लगे तब भी बैठकर जप करो, स्मरण करो।
बैठोगे तो उसके लिए ही न?
फिर वह स्वयं ही चिंता करेगा।
चिंता भगाने की युक्ति :-
चिंता के कारण रात को नींद नहीं आती हो तो पुकारो : ‘हे हरि, हे गोविंद, हे माधव !’
15 से 25 मिनट भगवान का नाम लो |
संत तुलसीदासजी कहते हैं कि चिंता क्या करते हो ?
भज लो श्रीरघुवीर .... हे गोविंद ! हे रघुवीर ! हे राम !
दुःख मन में आता है, चिंता चित्त में आती है; मैं तो निर्लेप नारायण,
अमर आत्मा हूँ |
मैं प्रभु का हूँ, प्रभु मेरे हैं |
इससे चिंता भागेगी |
दूसरा, पूरा श्वास भरकर उसे अंदर रोके बीना पूरी तरह बाहर निकाल दें |
श्वास भीतर भरते समय भावना करें कि हम निश्चिंतता, आनंद, शांति भीतर भर रहे हैं तथा मुँह से फूँक मारते हुये श्वास बाहर छोड़ते समय भावना करें कि हम चिंता, तनाव, हताशा, निराशा को बाहर निकाल रहे हैं |
ऐसा 20 – 25 बार करने से चिंता, तनाव एवं थकान दूर होकर तृप्ति का अनुभव होता है |
काहे को चिंता करना ?
जो होगा देखा जायेगा |
हम ईश्वर के, ईश्वर हमारे !
ईश्वर चेतनस्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, आनंदस्वरूप हैं और हमारे सुह्रद हैं |

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