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कहानी एक राजा और छोटी बच्ची की(मिटटी को मिटटी में मिलाने गए हैं)! जरूर पढ़िए !

एक समय एक राजा शिकार करने के लिए जंगल में गए , एक हिरण को देख कर उन्होंने अपने घोड़े को उसके पीछे दौड़ाया | उनके बाकी के साथी उनसे पीछे ही रहे गए | राजा दूर एक ऐसे जंगल में पहुचं गया , जहाँ मीलों तक पानी नहीं था | राजा को प्यास ने बहुत ही ज्यादा व्याकुल कर दिया | जब राजा और कुछ आगे बड़े तो उन्हें एक किसान की झोपडी दिखाई दी | राजा दौड़ कर झोपडी के आगे गए | वहां 8-10 साल की कन्या खेल रही थी राजा ने उस कन्या से कहा बेटी शीघ्र ही एक ग्लास जल लाओ , मुझको बहुत जोर की प्यास लगी है!

उस कन्या ने राजा को आम मुसाफिर समझ कर ला के एक खाट डाल दी और बेठने के लिए कहा तथा जल का एक ग्लास लाकर राजा के हाथ में थमा दिया राजा ने देखा की पानी में तिनके पड़ें हुए हैं , जिनको देख कर राजा को बहुत क्रोध आया और उसी आवेश में आकर उस कन्या से कहने  लगे की ” तुम्हारे पिता कहाँ हैं ? कन्या ने उत्तर दिया ” मिटटी को मिटटी में मिलाने गए हैं!
राजा को लड़की पर और ज्यादा क्रोध आया , परंतु प्यास लगी थी , जल पीना था , इसीलिए राजा ने क्रोध को दबा कर कहने  लगे की और साफ जल लाओ | वह कन्या जल लाने के लिए फिर से झोपडी के अंदर गयी , इतने में ही उस लड़की का पिता भी वहां आ गया | उसने तुरंत राजा को पहचान लिया और उसने प्रणाम किया ! राजा को और कहने लगा की ” हुजुर आप एक गरीब की झोपड़ी में कैसे पधारे ? राजा कहने  लगा की में शिकार के लिए वन में आया था , अपने साथियों से बिछड़ कर दूर आ गया हूँ , मुझे बहुत जोर की प्यास लगी थी | यहाँ तुम्हारी कन्या से मैंने जल माँगा , तब तुम्हारी कन्या जल में तिनके डाल कर ले आई , जब मैंने तुम्हारे बारे में पूछा तो उसने कहा की ” मिटटी को मिटटी में मिलाने गए हैं.
कन्या के पिता कहने लगे हुजूर कन्या ने ठीक ही उत्तर दिया है | एक सज्जन के बच्चे की मौत होगयी थी हम उसके शरीर को मिटटी में दबाने गए थे | इतने में वो कन्या भी जल का गिलास लेकर आ गयी | किसान ने पूछा बेटी तुमने राजा को अच्छा जल क्यूँ नहीं दिया ? कन्या ने उत्तर दिया , “पिताजी राजा धूप की तेजी में भागते हुए आये थे | सारे शरीर से पसीना छूट रहा था | यदि आते ही जल पिला दिया जाता तो वो जल राजा को हानिकारक हो सकता था ! मैं इनके लिए मना तो नहीं कर सकी , परंतु जल में तिनके डाल लायी , ताकि राजा कुछ समय तक जल न पी सकें.
राजा कन्या की चतुरता को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और अपने गले से बहुमूल्य हीरों का हार उस कन्या के गले में डाल दिए , उनको हमेशा हमेशा के लिए दरिद्रता के दुखों से छुड़ा दिया |
जब यहाँ का राजा भी प्रसन्न होकर यहाँ के दुखों से हमें छुड़ा देता है , तो फिर परम पिता परमात्मा राजी हो जाये तो फिर किसकी हिम्मत है जो हमको किसी प्रकार का कष्ट दे सके ? परंतु परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए सच्चे प्रेम की जरूरत होती है|
अनेक जप , तप , योग , यग करने से परमात्मा में स्नेह नहीं हो सकता है | जिसने अपने मन्न और इन्द्रियों को अपने वश में नहीं किया है उसका किया हुआ जप , योग इत्यादि उस हाथी के स्नान के समान है | जो नदी में नहाने के बाद धुल को अपने सब अंगों पर डाल लेता है.

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