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यदि ऐसा नहीं करते हैं तो कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है

एक जंगल में कहीं से कौओं को एक जोड़ा उड़ता हुआ आया और एक ऊंचे पेड़ पर घोंसला बनाने में जुट गया। उस पेड़ के नीचे एक चूहा रहता था| कौओं को घोंसला बनाता देख उस पेड़ के नीचे रहने वाली उस चूहे ने कहा- "देखो भाई! इस पेड़ पर घोंसला बनाना सुरक्षित नहीं है।"
कौए ने कहा- "तो फिर हम कहां बनाएं घोंसला?"

चूहे ने कहा- "यह पेड़ ऊंचा होते हुए भी सुरक्षित नहीं हैं। तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो। ये अंदर से खोखला है।”
अभी चूहे की बात पूरी ही नहीं हुई थी कि कौए ने कहा- “हमारे काम में दखल मत दो। तुम जमीन के अंदर रहने वाले लोग क्या जानते हैं कि घोंसला कैसे बनाया जाता है।"
इस तरह कौए ने घोंसला बनाया और फिर मादा कौए ने जल्द ही अंडे दिए। एक दिन अचानक आंधी चली और पेड़ हवा से जोर-जोर से हिलने लगा। इस तरह देखते ही देखते ही कौए का घोंसला धराशायी हो गया। उनके अंडे नीचे गिर गए। यह सब देख कौआ और मादा कौआ काफी दुखी हो गए।
चूहे ने यह सब देखा तो कौए से कहा- “तुम लोग तो कहते थे कि पूरे जंगल को जानते हो। लेकिन तुमने इस पेड़ को बहार से देखा है। मैंने पेड़ को अंदर से देखा है। पेड़ की जड़े कमजोर हो गईं थीं। लेकिन तुम मेरी बात नहीं मान रहे थे। और फिर जो नहीं होना था वह तुम्हारे साथ हो गया।"
दरअसल हमें चीजों को बाहर से ही नहीं बल्कि अंदर से भी जांचना और परखना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है।

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